थप्पड़ मारना इनकी फितरत में है। क्या कुछ नहीं हो रहा है हमारी राजधानी में। हम लोगों को चुप कराने की ट्रेनिंग इन्हें बखूबी दी गयी है। माना कि कानून व्यवस्था बनाये रखना ही इनका काम है पर ये तो आम आदमी के साथ हुए बुरे बर्ताव को तोलकर पैसे से भरपाई की बात करने लगे हैं। अरे कुछ तो हमारे राजनेताओं के लिये छोड़ दो।
अपराधी चौड़े होकर खुले में घूम रहें हैं, उन्हें कोई थप्पड़ नहीं मारता उलट हम उनकी ऐसी खातिरदारी करते हैं जैसे कोई बाहर गाँव से आया हमारा रिश्तेदार। हमे उस समय मानव अधिकार याद आते हैं। दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी ही बोई फ़सल बेकार होने पर भी काटने को मजबूर है । अति संवेदनशीलता का एक उदाहरण ये सांगानेर में दे चुके है जहाँ पर जनता को बेवजह कई दिनों तक कर्फ्यू के कारण परेशान होना पड़ा। पहला थप्पड़ वहां के आम आदमी को कर्फ्यू लगाने पर पड़ा और दूसरा जब वो अपने नौनिहालों के लिए रोटी की व्यवस्था को गया।
अपना प्रभाव कायम करने का ये तरीका बड़ा ही विचित्र है। शेर को भी अपनी चिंघाड़ से औरों को डराने के लिए पहले शेर बनना पड़ता है परन्तु वह भी बेवजह किसी पर यूँ ही नहीं झपटता। सत्य तो ये है कि इन्ही क़ानून के रखवालों से सबसे ज्यादा डर आम आदमी को लगता है।
अगर यह परीक्षा है तो हमे इसमें अच्छे अंको से पास होना बेहद जरूरी है वरना हम पिछड़े हुए ही रह जायेंगे।
कैसी विडम्बना है आज सारे विश्व की निगाहें हमारी और है और उन्हें वो सब दिख रहा है जो हम दिखाना नहीं चाहते। हमारे प्रधानमंत्री जी एक अदद आंसू खर्च करने का होंसला भी नहीं रखते, उनका सोच शायद यह होगा जब कुछ कर नहीं सकते तो फिर क्यों उस बारे में अपना समय क्यूँबर्बाद किया जाए।
सच तो यह है कि हमें अपनी सुरक्षा का जिम्मा अपने ही हाथों में लेना होगा, और वो भी बिना किसी देरी के।
Saturday, April 20, 2013
थप्पड़ की गूँज
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