Saturday, April 20, 2013

थप्पड़ की गूँज

थप्पड़ मारना इनकी फितरत में है। क्या कुछ नहीं हो रहा है हमारी राजधानी में। हम लोगों को चुप कराने की ट्रेनिंग इन्हें बखूबी दी गयी है। माना कि कानून व्यवस्था बनाये रखना ही इनका काम है पर ये तो आम आदमी के साथ हुए बुरे बर्ताव को तोलकर पैसे से भरपाई की बात करने लगे हैं। अरे कुछ तो हमारे राजनेताओं के लिये छोड़ दो।                                
अपराधी चौड़े होकर खुले में घूम रहें हैं, उन्हें कोई थप्पड़ नहीं मारता उलट हम उनकी ऐसी खातिरदारी करते हैं जैसे कोई बाहर गाँव से आया हमारा रिश्तेदार। हमे उस समय मानव अधिकार याद आते हैं। दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी ही बोई फ़सल बेकार होने पर भी काटने को मजबूर है । अति संवेदनशीलता का एक उदाहरण ये सांगानेर में दे चुके है जहाँ पर जनता को बेवजह कई दिनों तक कर्फ्यू के कारण परेशान होना पड़ा। पहला थप्पड़ वहां के आम आदमी को कर्फ्यू लगाने पर पड़ा और दूसरा जब वो अपने नौनिहालों के लिए रोटी की व्यवस्था को गया।
अपना प्रभाव कायम करने का ये तरीका बड़ा ही विचित्र है। शेर को भी अपनी चिंघाड़ से औरों को डराने के लिए पहले शेर बनना पड़ता है परन्तु वह भी बेवजह किसी पर यूँ ही नहीं झपटता। सत्य तो ये है कि इन्ही क़ानून के रखवालों से सबसे ज्यादा डर आम आदमी को लगता है।
अगर यह परीक्षा है तो हमे इसमें अच्छे अंको से पास होना बेहद जरूरी है वरना हम पिछड़े हुए ही रह जायेंगे।
कैसी विडम्बना है आज सारे विश्व की निगाहें हमारी और है और उन्हें वो सब दिख रहा है जो हम दिखाना नहीं चाहते। हमारे प्रधानमंत्री जी एक अदद आंसू खर्च करने का होंसला भी नहीं रखते, उनका सोच शायद यह होगा जब कुछ कर नहीं सकते तो फिर क्यों उस बारे में अपना समय क्यूँबर्बाद किया जाए।
सच तो यह है कि हमें अपनी सुरक्षा का जिम्मा अपने ही हाथों में लेना होगा, और वो भी बिना किसी देरी के।

Monday, January 23, 2012

यूँ ग़म को गले लगाकर कब तक भटकते रहोगे

यह क्या बात है की लोग हँसना छोड़ रोने लगे हैं
यह क्या तमाशा है क्यों होंश खोने लगे हैं ,

मुड कर ज़रा शरीफों की शराफत तो देखिये
मुहब्बत छोड़ नफरत के बीज बोने लगे हैं,

यहाँ तक घर कर गयी है दिलों में नफरत
साया तक छू जाये तो जिस्म धोने लगे हैं,

औपचारिकताओं की भी हद है आखिर
खतों के मजमून भी अब तार से होने लगे हैं,

किसको समय है किसी का साथ देने का
यह रिश्ते भी अब बुलबुले से होने लगे हैं,

कहने को हैं वचन अब भी सात जन्मों के
क्या इन्हें निभाने में भी इतनी ही जन्म लगेंगे,

रुको मुहब्बत को यूँ रुसवा ना करो
खो दोगे किसी को तो फिर क्या करते फिरोगे,

ढूंढ लो ख़ुशी हर पल में यारों
यूँ ग़म को गले लगाकर कब तक भटकते रहोगे

यूँ ग़म को गले लगाकर कब तक भटकते रहोगे . .

Tuesday, August 2, 2011

ना जाने कौन हूँ मैं

ना जाने कौन हूँ मैं, क्या नाम है मेरा
हूँ एक बुलबुला थोडा धुला धवल सा,

इस सतरंगी से संसार में
रंगों के इस जंजाल में,
रँगा हूँ मैं भी इश्क के रंग में,

यह रंग निराला है
देखो कैसे हमें संभाला है
प्रियतम का प्यार निराला
जो कर देता है सुर्ख मुझे,

हाँ मुझे भी एक नाम मिला
एक नया संसार मिला,
इश्क का रंग सचमुच निराला है
देखो कैसे हमें संभाला है ....
देखो कैसे हमें संभाला है ....

Saturday, June 25, 2011

रात आधी

रात आधी खींचकर मेरी हथेली एक उँगली से लिखा था प्यार तुमने
बोल तो ना पायीं थी तुम, आँखों से ही तो कहा था तुमने
याद है तुम्हे वोह रात निकली थी बातों में हमने
भोर कब हुई थी ना होगा याद तुम्हे
अलसाई उन आँखों को लेकर तुमने जब घूँघट उठाया था
सब्र न था तुम्हारी सखियों को,
कुछ खिलखिलाकर हंस पड़ी, कुछ ने तुम्हे चिकोटी काटी थी
वोह एहसास जेहन में मेरे बसा हुआ है अब भी
रात आधी खींचकर मेरी हथेली एक उँगली से लिखा था प्यार तुमने

Saturday, March 19, 2011

होली की मस्ती

चल तारों का बिज़नस कर के सूरज से रिच हो जाते हैं
उस पैसे से मंगल गृह पर एक प्राइमरी स्कूल चलाते हैं
चल रेल की पटरी पर लेट हम ट्रेन की सिटी गिनते हैं
चल किसी गरीब के बच्चे की लंगोटी बुनते हैं
मुस्कान ज़रा फ़ेंक आते हैं
वहां जिस घर में ग़म रहते हैं

चल दल शुगर फ्री की गोली
एक मीठा पान बनवाते हैं
चल यूँ ही झगडा करते हैं
और फिर झगडा सुलटाते हैं
जो हमको समझे समझदार
उसका चेक उप करवाते हैं

Thursday, September 30, 2010

Madhushala

मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका प्याला,

एक मगर उनका मदिरालय, एक मगर उनकी हाला,

दोनों रहेते एक जब तक, मंदिर मस्जिद में जाते,

बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला !

आज के इस नए युग में भी देखो,क्या हो रहा है,

लेकिन ये एक मधुशाला है जहाँ हमेशा बसंत है,

जिसका नहीं कोई, ये उसके लिए यह मधुबाला है,

अरे सीखो इस से, ये करती नहीं भेद,

इतना बीत गया समय फिर भी,

देखो वही सुराही है, और वही प्याला है.

Saturday, February 27, 2010

साथ तेरे होली....

जवानी में खेलो, जवानी सी होली,
हो जैसे कहीं, आग-पानी की होली
तेरी आँखों से जो छलकती है अब भी
तमन्ना उसी ज़िन्दगी की हो ली