बोल तो ना पायीं थी तुम, आँखों से ही तो कहा था तुमने
याद है तुम्हे वोह रात निकली थी बातों में हमने
भोर कब हुई थी ना होगा याद तुम्हे
अलसाई उन आँखों को लेकर तुमने जब घूँघट उठाया था
सब्र न था तुम्हारी सखियों को,
कुछ खिलखिलाकर हंस पड़ी, कुछ ने तुम्हे चिकोटी काटी थी
वोह एहसास जेहन में मेरे बसा हुआ है अब भी
रात आधी खींचकर मेरी हथेली एक उँगली से लिखा था प्यार तुमने
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